केंद्र सरकार की आयुष्मान भारत योजना तमाम वंचितों और आर्थिक रूप से कमजोर लोगों के लिए शुरू की गई थी. दावा किया जा रहा है कि इस योजना के असल हकदारों इसका पूरा फायदा मिल रहा है, लेकिन हकीकत इससे उलट है.
दरअसल सरकार की इस योजना के असल हकदार ही इसके लाभ से वंचित हैं. जबकि, करोड़पति, सरकारी कर्मचारी और कारोबारियों को इस योजना का फायदा मिल रहा है.
मोदी केंद्र सरकार की महत्वाकांक्षी योजना में इसके हकदारों की फेहरिस्त में गड़बड़ इस कदर है कि उत्तर प्रदेश के हरदोई जिले में पात्र लाभार्थियों की सूची में पूर्व राज्यसभा सांसद नरेश अग्रवाल और उनके विधायक बेटे समेत प्रदेश के पूर्व स्वास्थ्य राज्यमंत्री नितिन अग्रवाल तक का भी नाम शामिल है.
बीते दिनों प्रदेश के स्वास्थ्य मंत्री के हरदोई आने पर जब उनसे इस गड़बड़ी पर सवाल किया गया तो वे सिस्टम की कमी बताने की बजाय पिछली सरकारों को दोष देते नजर आए.
इतना ही नहीं, पूर्व मंत्री नितिन अग्रवाल के तो पूरे परिवार के नाम ही सूची में है. हरदोई में 2 लाख 70 हजार परिवारों को आयुष्मान योजना में शामिल किया गया है.
सूची में हरदोई के प्रमुख चिकित्सक और उनके कारोबारी भाई का भी नाम भी है. सीएमओ के मुताबिक 2011 की जनगणना के अनुसार गरीब और निर्बल वर्ग के लोगों की सूची को पात्र बनाया गया है.
बता दें कि मोदी सरकार की बड़ी योजनाओं में से एक 'आयुष्मान भारत' के तहत 10 करोड़ परिवारों को 5 लाख रुपये तक के फ्री इलाज की सुविधा का प्रवाधान है. इस योजना का मकसद आर्थिक तौर पर कमजोर लोगों को बेहतर स्वास्थ्य सेवा देना है. इसका फायदा योजना में शामिल सरकारी और अन्य अस्पतालों में लिया जा सकता है.
राष्ट्रीय जाट संरक्षण समिति के अध्यक्ष विपिन सिंह बालियान कहते हैं कि मुज़फ्फरनगर-शामली के दंगों के बाद से समुदाय की ओर से मुस्लिम-जाट की तैयार हो गई खाई को पाटने की पूरी कोशिश हुई है और उसका नतीजा कैराना में साफ़ दिखने को मिला जहां तबस्सुम हसन की भारी विजय हुई.
कहा तो यहां तक जाता है कि सपा-बसपा गठबंधन की जो ये रूपरेखा आज दिख रही है उसकी सोच उस समय ही उभरी थी.
विपिन सिंह बालियान कहते हैं कि उत्तर प्रदेश में कम-से-कम 18 सीटें ऐसी हैं जहां जाटों के वोट का ज़बरदस्त प्रभाव है और ये बात अखिलेश और मायावती को भी समझनी होगी कि उन्हें यहां अजित सिंह की ज़रूरत होगी क्योंकि वही हमारे सबसे बड़े नेता हैं.
रामदत्त त्रिपाठी कहते हैं कि पश्चिमी उत्तर प्रदेश में गठबंधन को जाट वोटों की ज़रूरत पड़ेगी क्योंकि यहां सिर्फ़ पिछड़ों और दलितों के वोटों के सहारे सीटें नहीं जीती जा सकती हैं.
"इस क्षेत्र में कांग्रेस का उतना जनाधार नहीं है, अजित सिंह शायद बीजेपी के साथ न जाएं क्योंकि उन्हें लगता है कि इस बार लोगों की केंद्र में सत्ता में मौजूद मोदी और राज्य की योगी आदित्यनाथ की सरकार से नाराज़गी है. साथ ही उन्हें ये भी पता है कि सिर्फ़ एक समुदाय यानी जाटों के वोटों के बल पर वो चुनाव नहीं जीत सकते तो एसपी-बीएसपी गठबंधन के साथ जाना उनकी भी मजबूरी है," त्रिपाठी कहते हैं.
गठबंधन में तय फार्मूले के मुताबिक़ प्रदेश की 80 सीटों में से एसपी 38 सीटों पर लडेगी जबकि बीएसपी के खाते में भी इतनी ही सीटें आई हैं. गठबंधन ने रायबरेली और अमेठी से उम्मीदवार न उतारने का भी ऐलान किया है. बाक़ी दो सीटें दोनों दलों ने समान विचारधारा वाले दलों के लिए छोड़ दिया है. गठबंधन ने ये भी फ़ैसला किया है कि वो रायबरेली और अमेठी में, जिन्हें कांग्रेस की पारंपरिक सीट माना जाता है, अपने उम्मीदवार नहीं उतारेगी.
दरअसल सरकार की इस योजना के असल हकदार ही इसके लाभ से वंचित हैं. जबकि, करोड़पति, सरकारी कर्मचारी और कारोबारियों को इस योजना का फायदा मिल रहा है.
मोदी केंद्र सरकार की महत्वाकांक्षी योजना में इसके हकदारों की फेहरिस्त में गड़बड़ इस कदर है कि उत्तर प्रदेश के हरदोई जिले में पात्र लाभार्थियों की सूची में पूर्व राज्यसभा सांसद नरेश अग्रवाल और उनके विधायक बेटे समेत प्रदेश के पूर्व स्वास्थ्य राज्यमंत्री नितिन अग्रवाल तक का भी नाम शामिल है.
बीते दिनों प्रदेश के स्वास्थ्य मंत्री के हरदोई आने पर जब उनसे इस गड़बड़ी पर सवाल किया गया तो वे सिस्टम की कमी बताने की बजाय पिछली सरकारों को दोष देते नजर आए.
इतना ही नहीं, पूर्व मंत्री नितिन अग्रवाल के तो पूरे परिवार के नाम ही सूची में है. हरदोई में 2 लाख 70 हजार परिवारों को आयुष्मान योजना में शामिल किया गया है.
सूची में हरदोई के प्रमुख चिकित्सक और उनके कारोबारी भाई का भी नाम भी है. सीएमओ के मुताबिक 2011 की जनगणना के अनुसार गरीब और निर्बल वर्ग के लोगों की सूची को पात्र बनाया गया है.
बता दें कि मोदी सरकार की बड़ी योजनाओं में से एक 'आयुष्मान भारत' के तहत 10 करोड़ परिवारों को 5 लाख रुपये तक के फ्री इलाज की सुविधा का प्रवाधान है. इस योजना का मकसद आर्थिक तौर पर कमजोर लोगों को बेहतर स्वास्थ्य सेवा देना है. इसका फायदा योजना में शामिल सरकारी और अन्य अस्पतालों में लिया जा सकता है.
राष्ट्रीय जाट संरक्षण समिति के अध्यक्ष विपिन सिंह बालियान कहते हैं कि मुज़फ्फरनगर-शामली के दंगों के बाद से समुदाय की ओर से मुस्लिम-जाट की तैयार हो गई खाई को पाटने की पूरी कोशिश हुई है और उसका नतीजा कैराना में साफ़ दिखने को मिला जहां तबस्सुम हसन की भारी विजय हुई.
कहा तो यहां तक जाता है कि सपा-बसपा गठबंधन की जो ये रूपरेखा आज दिख रही है उसकी सोच उस समय ही उभरी थी.
विपिन सिंह बालियान कहते हैं कि उत्तर प्रदेश में कम-से-कम 18 सीटें ऐसी हैं जहां जाटों के वोट का ज़बरदस्त प्रभाव है और ये बात अखिलेश और मायावती को भी समझनी होगी कि उन्हें यहां अजित सिंह की ज़रूरत होगी क्योंकि वही हमारे सबसे बड़े नेता हैं.
रामदत्त त्रिपाठी कहते हैं कि पश्चिमी उत्तर प्रदेश में गठबंधन को जाट वोटों की ज़रूरत पड़ेगी क्योंकि यहां सिर्फ़ पिछड़ों और दलितों के वोटों के सहारे सीटें नहीं जीती जा सकती हैं.
"इस क्षेत्र में कांग्रेस का उतना जनाधार नहीं है, अजित सिंह शायद बीजेपी के साथ न जाएं क्योंकि उन्हें लगता है कि इस बार लोगों की केंद्र में सत्ता में मौजूद मोदी और राज्य की योगी आदित्यनाथ की सरकार से नाराज़गी है. साथ ही उन्हें ये भी पता है कि सिर्फ़ एक समुदाय यानी जाटों के वोटों के बल पर वो चुनाव नहीं जीत सकते तो एसपी-बीएसपी गठबंधन के साथ जाना उनकी भी मजबूरी है," त्रिपाठी कहते हैं.
गठबंधन में तय फार्मूले के मुताबिक़ प्रदेश की 80 सीटों में से एसपी 38 सीटों पर लडेगी जबकि बीएसपी के खाते में भी इतनी ही सीटें आई हैं. गठबंधन ने रायबरेली और अमेठी से उम्मीदवार न उतारने का भी ऐलान किया है. बाक़ी दो सीटें दोनों दलों ने समान विचारधारा वाले दलों के लिए छोड़ दिया है. गठबंधन ने ये भी फ़ैसला किया है कि वो रायबरेली और अमेठी में, जिन्हें कांग्रेस की पारंपरिक सीट माना जाता है, अपने उम्मीदवार नहीं उतारेगी.
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